वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (wwf)और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (unep) ने हाल ही में जारी,' A future for all-the need for human-wildlife coexistence' के नाम से एक साझा रिर्पोट जारी की।
मुख्य बिन्दु :
रिर्पोट के अनुसार ,’मानव-वन्यजीव संघर्ष दुनिया की अन्य प्रतिष्ठित प्रजातियों के दीर्घकालिक अस्तित्व के लिए मुख्य खतरों में से एक हैं।
यह ध्रुवीय भालू, सील और हाथी जैसे विशालकाय शाकाहारी जीवों को भी प्रभावित करता है।
इस रिर्पोट के मुताबिक भारत के 35 प्रतिशत बाघ क्षेत्र, अफ्रीकी शरों के 40 प्रतिशत क्षेत्र, और अफ्रीकी एंव एशियाई हाथियों के 70 प्रतिशत क्षेत्र, संरक्षित क्षेत्र से बाहर हैं।
इस खूनी संघर्ष के कारण दुनिया की 75 प्रतिशत से ज्यादा जंगली बिल्लियों (wildcats) की प्रजातियां भी प्रभावित हैं।
इस संघर्ष के कारण ही 1970 के बाद वैष्विक वन्यजीव गणना में 68 फीसदी तक गिरावट आयी है।
भारतीय वन्यजीव परिदृश्य :
पर्यावरण, वन एंव जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने मानव-हाथी संघर्ष पर अपने ऑकड़े जारी किए हैं, जिसके अनुसार भारत में, 2014-2015 और 2018-2019 के बीच 500 से अधिक हाथियों की मौत हुई थी। इसी,मानव-हाथी खूनी संघर्ष में 2361 लोगों ने भी अपनी जान गवाई।
रिर्पोट के अनुसार समुद्री और स्थलीय संरक्षित क्षेत्र दुनिया में केवल 9.67 प्रतिषत क्षेत्र को कवर करते हैं, और इनमें से अधिकांश संरक्षित क्षेत्र एक दूसरे से अलग हो गए हैं।इसलिये कई प्रजातियां अपने अस्तित्व के लिए मानव-बस्ती पर निर्भर करने लगी हैं।
निष्कर्ष :
मानव-वन्यजीव संघर्ष को पूरी तरह से समाप्त करना सम्भव नहीं है, लेकिन अच्छी योजनाओं को क्रियांवित कर, मानव-वन्यजीव संघर्ष के प्रभाव कम किया जा सकता है और एक आदर्श ढाचा प्रस्तुत कर मानव-वन्यजीव के बीच सह अस्तित्व को बढ़ावा देना चाहिये।