Ranthambore | 25 November 2021
रणथंभौर में वाहन मालिकों की लापरवाही, पर्यटकों एंव नेचर गाइड़ों पर भारी पड़ रही है। मौजूदा सत्र में 26 अक्टूबर से अब तक तीन बार पर्यटक वाहनों (एक बार जिप्सी और दो बार कैंटर) के ब्रेक फेल हो चुके हैं। ताजा खबर गुरूवार, 18 नवम्बर की शाम सफारी से आयी, जब एक बार फिर एक पर्यटक वाहन, "कैंटर " के जोन-3 में ब्रेक फेल हो गये। कैंटर चढ़ाई से कुछ दूर जाकर एक पेड़ से टकरा कर रूक गया। नेचर गाइड़, विश्नू सिंह ने बताया कि, "वाहन के ब्रेक फेल होते ही एक पल को ऐसा लगा कि पर्यटक और मेरी सांसे अटक गयी, लेकिन जब कैंटर पेड़ से टकरा कर रूक गया, तब हम सभी ने राहत की एक गहरी सांस ली।"
सभी पर्यटकों को नेचर गाइड़ व ड्राइवर सहित दूसरे वाहन से जंगल से बाहर लाया गया। घायल पर्यटकों को एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उपचार के बाद उनको छुट्टी दे दी गयी। हादसे में कुछ ही पर्यटकों को मामूली सी चोट आयी थी।
वाहनों की मॉडल कंडीशान
इस सीजन से पूर्व रणथंभौर में पाँच साल की मॉडल कंड़ीशन का नियम लागू था, जिस के तहत कोई भी पर्यटक वाहन (जिप्सी या कैंटर ) मात्र 5 साल तक ही रणथंभौर में चल पाते थे। लेकिन अब वन विभाग ने पर्यटक वाहन की मॉडल कंड़ीशन को, करोना काल के कारण, वाहन मालिकों की क्ररबद्भ प्रार्थना पर 5 साल से बढ़ा कर 9 साल कर दी है। ऐसे में बार-बार हो रही वाहन-दुर्घटनों के लिये कुछ बुद्धिजीवी बढ़ी हुई मॉडल कंड़ीशन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
क्या वास्तव में, मॉडल कंडीशन बढ़ाना भारी पड़ रहा है ?
रणथंभौर में, पर्यटक वाहनों के लगातार ब्रेक फेल होने के लिये सिर्फ, “बढ़ी हुई मॉडल कंड़ीशन” को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है, क्योंकि जब रणथंभौर में पाँच साल की, " मॉडल कंड़ीशन" का नियम लागू था तब यही वाहन, रणथंभौर में पाँच साल चलने के बाद, दूसरे अन्य पार्को में भी चलते थे, जहाँ वाहनों की मॉडल कंड़ीशन का नियम दस साल है, जैसे जिम कार्बेट, कान्हा आदि। लेकिन दूसरे पार्कों से इन वाहनों के बारे में कोई भी अप्रिय घटना नहीं मिलती। अतः मॉडल कंड़ीशन को दोष देना, वन विभाग के साथ सरासर अन्याय करना है। लेकिन अगर फिर भी कोई ,“बढ़ी हुई मॉडल कंड़ीशन “ को दोष देता है, तो उसे वन विभाग के ड्राइवर जैसे मनोज , रंजीत सिंह, अभय सिंह और रूपा सिंह से सबक लेना चाहिये क्योंकि ये वो कुशल ड्राइवर योद्धा हैं, जो वो वाहन चलाते हैं, जो मॉडल कंड़ीशन से परे हैं। फिर भी कोई अप्रिय घटना आज तक इनके नाम दर्ज नहीं हैं। ऐसे सभी ड्राइवरों को मेरा सलाम जिन्होंने अपने काम को पूरी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठ के साथ किया।
मूल समस्या
अब तक हुए हादसों की वजह वाहनों के ब्रेक फेल होना है। तीनों ही पर्यटक वाहनों के ब्रेक फेल उस समय होते हैं, जब वे एक चढ़ाई से नीचे (ढ़लान ) की ओर उतर रहे थे। ऐसी स्थिति में ब्रेक फेल होना दो कमियों को दर्शाता है- एक, वाहनों की फिट नेस पूरी नहीं थी - इसका मतलब कि वन विभाग से कही चूक हो गयी कि अनफिट वाहनों को पार्क में चलने ही क्यों दिया ? दूसरी -उनके वाहन चालक नौसखिया थें - जिन्होंने वाहन चलाने से पूर्व वाहन को एक बार भी चेक नहीं किया या फिर उन्हें न तो वाहन की और ना ही पर्यटक वाहन को जंगल में चलाने की समझ थी- शायद वे टुक-टुक (ऑटो रिक्शा ) ड्राईवर थे।
वाहनों की फिटनेस एंव वाहनों पर कुशल चालक रखने की जिम्मेदारी सिर्फ वाहनों मालिकों की है। अतः इन सभी र्दुघटनाओं के लिये वे ही वाहन मालिक जिम्मेदार है जिन्होंने थोड़े से पैसे बचाने के लिये, ना तो अपने वाहनों की समय पर सर्विस कराई और ना ही उन्होंने अपने वाहन पर कोई कुशल चालक रखा ( आज भी कई वाहन ऐसे हैं जिन पर कोई भी नियमित ड्राईवर नहीं हैं, ऐसे वाहनों को अक्सर टुक-टुक ड्राईवर, चलाते हैं, जो ढ़लान आने पर इंजन ऑफ या न्यूटल कर देते हैं, जिनको पगार के नाम 100 या 200 रूपये मिलते या वे सिर्फ टिप पर ही निर्भर हैं- ऐसे ड्राईवर और वाहन मालिक अपने वाहन के बारे कितना जानते होंगे!)- जिस के कारण निर्दोष पर्यटकों एंव नेचर गाइड़ों को जाखिम भरी सफारी लेने पे मजबूर होना पड़ा । भगवान ऐसे गरीब वाहन चालकों को सदबुद्धि दें।
समाधान
वन विभाग को ऐसे गरीब वाहन मालिकों एंव नौसखिया वाहन चालाकों के खिलाफ ईमानदारी से जॉच कर, पार्क से बाहर का रास्ता दिखाना चाहिये।
सीख
जिन वाहन मालिकों को पर्यटन वाहन रखने की समझ नहीं, उनको रणथंभौर के ही Best driver cum vehicle owners - जैसे हिम्मत सिंह उर्फ पप्पू, अजीत सिंह और मोहन सिंह आदि से सीखना चाहिये - कि अपने वाहनों की साज-सज्जा कैसे की जाती है ! क्यों कि वो स्थानीय वाहन मालिक हैं, जिनकी गिनती रणथंभौर में सबसे अच्छे ड्राइवर के रूप में की जाती है और उनके वाहन रणथंभौर में दूर से ही सितारों की तरह चमकतें हैं।