नई दिल्ली | 4 अगस्त 2021 को अन्तरराष्ट्रीय उल्लू जागरूकता दिवस के अवसर पर ट्रैफिक (traffic) और डब्लूडब्लूएफ-इड़िया (WWF-India) ने एक सूचनात्मक 16 उल्लूओं का एक पोस्टर लाँच किया, जिसका शीषर्क था," अवैध वन्यजीव व्यापार से प्रभावित भारतीय उल्लू"।
पोस्टर का उद्देष्य, आम जन में उल्लुओं के प्रति जागरूकता और चेतना पैदा करना, जिससे उल्लुओं (विशेषकर 16 उल्लूओं की प्रजातियों) को अंधविश्वास के चलते बलि का बकरा बनने से रोका जा सके।
विश्व में उल्लुओं की करीब 250 प्रजातियां हैं, इनमें से 36 प्रजातियां भारत में पायी जाती हैं। ये सभी 36 प्रजातियां वन्यजीव अधिनियम 1972 के तहत संरक्षित है। अतः पक्षियों का शिकार करना, व्यापार करना, तस्करी करना या किसी अन्य तरह से उनका शोषण करना एक दंडनीय अपराध हैं। लेकिन कानून व्यवस्था के बावजूद भी, विशेषकर ग्रामीण परिवेश में, अंधविश्वासों, कुरीतियों और कुप्रथाओं के चलते सैंकडों निर्दोष उल्लू हर साल मार दिये जाते हैं। इस बारे में, वर्ड वाइल्ड लाइफ फंड (डब्लूडब्लूएफ, इड़िया) और ट्रैफिक संस्था ने अन्तरराष्ट्रीय उल्लू जागरूकता दिवस पर जानकारी दी।
अंधविश्वासों से पीड़ितइन संस्थाओं के अनुसार, भारत में, उल्लुओं की ऐसी 16 प्रजातियां की पहचान की गयी है जिनकी आमतौर पर तस्करी की जाती है। ये उल्लू अंधविश्वास और रीति रिवाजों से पीड़ित हैं जिनका अक्सर उपयोग स्थानीय लोग करते हैं जो तांत्रिक कहलाते हैं। हर साल, तांत्रिकों के कारण और अंधविश्वास के चलते, कुलीय देवी-देवताओं को प्रसन्न करने , वर्जनाओं से जुड़े रीति रिवाजों एंव अनुष्ठानों की पूर्ति के लिये सैकड़ों उल्लुओं को बलि की वेदी पर चढ़ा दिया जाता है या फिर उनके विभिन्न अंगों जैसे खोपड़ी, पंख, हृदय, रक्त, आंख, अंड़े एंव हड्डियों इत्यादि का उपयोग कर ऐसे अनुष्ठानों को पूरा किया जाता है।
दिपावली आते ही उल्लुओं की बलि का बिगुल बजने लगता है।संस्था ट्रैफिक का दावा है कि यह अवैध व्यापार उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, आंध् प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, राजस्थान, गुजरात और उत्तराखंड में तेजी से पनप रहा है।
ट्रैफिक एक संस्था है जो यह सुनिश्चित करने का काम करती है कि वन्यजीव व्यापार प्रकृति के संरक्षण के लिए खतरा न हो।
टै्रफिक के भारत कार्यालय के प्रमुख डॉ. साकेत बडोला ने कहा, "भारत में उल्लुओं का अवैध शिकार और तस्करी अंधविश्वास के पंखों पर टिका हुआ एक आकर्षक अवैध व्यापार बन गया है। लोग इन पक्षियों के पर्यावरण में महत्व को न समझ कर और तंत्र-मंत्र करने वालों की बातों में आ नुकसान पहुंचा रहे हैं। इसी वजह से ज्यादा शिकार हो रहे 16 प्रजातियों के उल्लुओं की पहचान की गई, ताकि आम नागरिक भी जागरुक हों और इनकी पहचान कर, इस गोरख धंधे को रोकने में सहायक बनें"।
“अवैध वन्यजीव व्यापार में उल्लुओं के बारे में जागरूकता की कमी और उन्हें पहचानने के लिए प्रवर्तन एजेंसियों की सीमित क्षमता ने इस अवैध गतिविधि का पता लगाना या उस पर अंकुश लगाना मुश्किल बना दिया है। हमें उम्मीद है कि हमारा नया पहचान पोस्टर इस प्रवर्तन अंतर को पाटने में मदद करेगा, ”उन्होंने कहा।
इन 16 प्रजातियों का सबसे ज्यादा शिकार...ओरिएंटल स्कोप्स आउल, मोटल्ड वुड आउल, ब्राउन वुड, कॉलार्ड स्कोप्स, टॉनी फिश आउल, स्पॉट-बैलिड ईगल-आउल, स्पॉटेड आउलेट, जंगल आउलेट, ब्राउन हॉक आउल, बार्न आउल, कॉलर्ड आउलेट, एशियन बॉर्ड आउलेट, ब्राउनफिश आउल, डस्की-ईगल आउल, ईस्टर्न ग्रास आउल, रॉक फिश आउल।
उल्लुओं में जादुई शक्तियों को देखना पर सिर्फ अंधविश्वास है, जो इतना व्यापक है कि शेक्सपियर ने भी मैकबेथ में इसकी चर्चा की है।
लेकिन आज उल्लुओं को ऐसे मारना एक मनोविकृति है, क्यों कि उल्लू एक शिकारी पक्षी हैं, जो चूहे, छछूंदर और हानिकारक कीड़े मकोड़ों का शिकार कर, पर्यावरण को स्वच्छ रखने में मदद करते हैं। इसलिये इन्हें प्रकृति का सफाईकर्मी कहते हैं। उल्लू धरती पर पारिस्थितिकी संतुलन बनाने में अहम भूमिका निभाते है। मलेशिया में तो किसान फसल बचाने के लिए उल्लूओं पाल रहे हैं। इसलिये उल्लू हमारे, किसानों और पर्यावरण के दोस्त हैं।
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